महाराणा प्रताप Maharana Pratap का सबसे चहेता घोड़ा चेतक Chetak Ghoda था, आज भी उसकी कविताएं पढ़ी जाती हैं। महाराणा प्रताप की तरह उनका घोड़ा चेतक भी बहुत बहादुर था। इतिहास के मुताबिक युद्ध भूमि में चेतक ने महाराणा प्रताप को अपनी पीठ पर बिठाकर कई फीट चौड़े नाले से छलांग लगा दी थी।

Chetak Ghoda
युद्ध में घायल होने के कारण चेतक की मृत्यु हो गई थी। आज भी चेतक की समाधि हल्दी घाटी में बनी हई है जो उसकी बहादुरी को बयां करती है।
[sc name=”blog” ]जब महाराणा प्रताप का घायल चेतक Chetak Ghoda भी भारी पड़ा मुगलों पर
1. चेतक घोड़े की सबसे खास बात थी कि, महाराणा प्रताप ने उसके चेहरे पर हाथी का मुखौटा लगा रखा था। ताकि युद्ध मैदान में दुश्मनों के हाथियों को कंफ्यूज किया जा सके।
2. युद्ध मैदान में बहुबल और हथियारों की अधिकता के चलते अकबर की सेना महाराणा प्रताप पर हावी होती जा रही थी। लेकिन अंत में बिजली की तरह दौड़ते चेतक घोड़े पर बैठकर महाराणा प्रताप ने दुश्मनों का संहार किया।
3. एक बार युद्ध में चेतक उछलकर हाथी के मस्तक पर चढ़ गया था। हालांकि हाथी से उतरते समय चेतक का एक पैर हाथी की सूंड में बंधी तलवार से कट गया।
4. अपना एक पैर कटे होने के बावजूद महाराणा को सुरक्षित स्थान पर लाने के लिए चेतक Chetak Ghoda बिना रुके पांच किलोमीटर तक दौड़ा। यहां तक कि उसने रास्ते में पड़ने वाले 100 मीटर के बरसाती नाले को भी एक छलांग में पार कर लिया। जिसे मुगल की सेना पार ना कर सकी।
5. ऐसा माना जाता है कि हल्दीघाटी के युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी।
6. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था।
7. हल्दीघाटी के युद्ध में हिंदू शासक महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले सिर्फ एक मुस्लिम सरदार था -हकीम खां सूरी।
8. महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कुल 11 शादियां की थीं। कहा जाता है कि उन्होंने ये सभी शादियां राजनैतिक कारणों से की थीं।
महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक Chetak Ghoda के बारे में नहीं जानते होंगे ये बातें
हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच जमकर संग्राम चला था। इस युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप का बड़ा सहयोगी माना जाने वाला उनका घोड़ा ‘चेतक’ भी हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया।
माना जाता है की चेतक Chetak Ghoda बहुत ही समझदार और वीर घोड़ा था। हल्दीघाटी के युद्ध में मुगल सेना से अपने स्वामी महाराणा प्रताप की जान की रक्षा के लिए चेतक 25 फीट गहरे दरिया से कूद गया था।
हल्दीघाटी में बुरी तरह घायल होने पर महाराणा प्रताप को रणभूमि छोड़नी पड़ी थी और अंत में इसी युद्धस्थल के पास चेतक घायल हो कर उसकी मृत्यु हो गई। आज भी चेतक का मंदिर वहां बना हुआ है और चेतक की पराक्रम कथा वर्णित है।
हिंदी साहित्य में चेतक के बारे में कई रचनाएं हुई। वास्तव में चेतक काफी उत्तेजित और फुर्तीला था और वो खुद अपने मालिक को ढूंढ़ता था, चेतक ने महाराणा प्रताप को ही अपने स्वामी के रूप में चुना था। कहा जाता है की महाराणा प्रताप और चेतक के बीच एक गहरा संबंध था। वास्तव में यदि देखा जाए तो महाराणा प्रताप भी चेतक Chetak Ghoda को बहुत चाहते थे। वह केवल इमानदार और फुर्तीला ही नही बल्कि निडर और शक्तिशाली भी था।
उस समय चेतक की अपने मालिक के प्रति वफादारी किसी दूसरे राजपूत शासक से भी ज्यादा बढ़कर थी। अपने मालिक की अंतिम सांस तक वह उन्ही के साथ था और युद्धभूमि से भी वह अपने घायल महाराज को सुरक्षित रूप से वापस ले आया था। इस बात को देखते हुए हमें इस बात को वर्तमान में मान ही लेना चाहिए की भले ही इंसान वफादार हो या ना हो, जानवर हमेशा वफादार ही होते हैं।