Shri Krishna Ne Yudhisthir  को जुआ खेलने से क्यों  नहीं रोका

सवाल ये कि श्री कृष्ण पांडवों के न सिर्फ रिश्तेदार थे, उनके इष्ट थे बल्कि उनके परम मित्र भी थे और साथ ही एक सलाहकार भी। पांडव भी श्री कृष्ण की बात हमेशा मानते थे। ऐसे में श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने से आखिर क्यों नहीं रोका? श्री कृष्ण चाहते तो न पांडव जुआ खेलते न ही युद्ध होता और न विनाश।

– शास्त्रों के अनुसार, दुर्योधन (कौन थी दुर्योधनकी पत्नी) और युधिष्ठिर ने द्यूतक्रीड़ा को धर्म का आधार बनाया। इस खेल में जहां दुर्योधन ने विवेक से काम लिया वहां युधिष्ठिर विवेकहीन और अहंकार में लिप्त हो गए।

– जिस तरह दुर्योधन को इस खेल की समझ न थी तो उसने मामा शकुनि का सहारा लिया ठीक उसी तरह अगर युधिष्ठिर भी पीछे हटकर श्री कृष्ण को आगे लाते को यह खेल शकुनि और श्री कृष्ण के बीच होता।

– जिसके बाद परिणाम किसके पक्ष में आता इसका अंदाजा तो हम सभी लगा सकते हैं। लेकिन युधिष्ठिर ने स्वयं को इस खेल का महारथी समझा और श्री कृष्ण से इस विषय में कोई चर्चा तक न की थी।

– महाभारत ग्रंथ में इस बात का वर्णन मिलता है कि जब श्री कृष्ण (श्री कृष्ण ने सूर्य की किसपुत्री से किया था विवाह) स्वयं पांडवों से द्यूतक्रीड़ा के पूर्व मिलने पहुंचे थे तब पांडवों ने उन्हें दरबार में आने से रोक दिया था। हुआ ये था कि पांडवों को मन ही मन पता था कि द्यूतक्रीड़ा एक बुरा खेल है और उन्हें भय था कि कृष्ण उनका साथ इसमें नहीं देंगे।

– पांडवों ने श्री कृष्ण से छुपकर इस खेल को खेलना चाहा लेकिन भगवान से कहां कुछ छिप पाता है। परंतु पांडवों द्वारा ये बोले जाने पर कि आप तभी आइयेगा केशव जब आपको बुलाया जाए तो श्री कृष्ण अर्जुन के कक्ष में ही रुके रहे थे। इसी कारण से वह पांडवों को नहीं रोक पाए।

– हालांकि यह बात भी स्पष्ट है कि अगर कृष्ण तब युधिष्ठिर को द्यूत खेलने से रोक देते तो द्वापर युग में अवतरित होने का उनका लक्ष्य पूर्ण नहीं होता क्योंकि तब न द्यूत क्रीड़ा होती, न पांडव हारते, न महाभारत युद्ध होता और न ही पांडवों द्वारा श्री कृष्ण अधर्मियों का वध कर पुनः धर्म की स्थापना कर पाते।