Class 10 SST Economics Chapter 1 in Hindi Medium Vikash

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Class 10 SST Economics Chapter 1 in Hindi Medium Vikash

अर्थव्यवस्था: अर्थव्यवस्था (Economy) उत्पादन, वितरण एवम खपत की एक सामाजिक व्यवस्था है। यह किसी देश या क्षेत्र विशेष में अर्थशास्त्र का गतित चित्र है। यह चित्र किसी विशेष अवधि का होता है। उदाहरण के लिए अगर हम कहते हैं ‘ समसामयिक भारतीय अर्थव्यवस्था ‘ तो इसका तात्पर्य होता है।

एक ढ़ाँचा जिसके अन्तर्गत लोगों की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर है, जनसंख्या में इसका दूसरा स्थान है और केवल 2.4% क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व की जनसंख्या के 17% भाग को शरण प्रदान करता है।

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1991 से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है। सुधारों से पूर्व मुख्य रूप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियन्त्रण का बोलबाला था और सुधार लागू करने से पूर्व इसका जोरदार विरोध भी हुआ परन्तु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से विरोध काफी हद तक कम हुआ है। हालाँकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुये हैं।

पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों (सांकेतिक) के आधार पर विश्व का पाँचवा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था है।अप्रैल २०१४ में जारी रिपोर्ट में वर्ष २०११ के विश्लेषण में विश्व बैंक ने “क्रयशक्ति समानता” (परचेज़िंग पावर पैरिटी) के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किया। बैंक के इंटरनैशनल कंपेरिजन प्रोग्राम (आईसीपी) के 2011 राउंड में अमेरिका और चीन के बाद भारत को स्थान दिया गया है। 2005 में यह 10वें स्थान पर थी। २००३-२००४ में भारत विश्व में १२वीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था थी। संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (यूएनएसडी) के राष्ट्रीय लेखों के प्रमुख समाहार डाटाबेस, दिसम्बर 2013 के आधार पर की गई देशों की रैंकिंग के अनुसार वर्तमान मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार भारत की रैंकिंग 10 और प्रति व्यक्ति सकल आय के अनुसार भारत विश्व में 161वें स्थान पर है। सन २००३ में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से विश्व बैंक के अनुसार भारत का 143 वाँ स्थान था।

इतिहास

भारत का आर्थिक विकास सिंधु घाटी सभ्यता से आरम्भ माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता की अर्थव्यवस्था मुख्यतः व्यापार पर आधारित प्रतीत होती है जो यातायात में प्रगति के आधार पर समझी जा सकती है। लगभग 600 ई॰पू॰ महाजनपदों में विशेष रूप से चिह्नित सिक्कों को ढ़ालना आरम्भ कर दिया था। इस समय को गहन व्यापारिक गतिविधि एवं नगरीय विकास के रूप में चिह्नित किया जाता है। 300 ई॰पू॰ से मौर्य काल ने भारतीय उपमहाद्वीप का एकीकरण किया। राजनीतिक एकीकरण और सैन्य सुरक्षा ने कृषि उत्पादकता में वृद्धि के साथ, व्यापार एवं वाणिज्य से सामान्य आर्थिक प्रणाली को बढ़ाव मिल।

अगले 1500 वर्षों में भारत में राष्ट्रकूट, होयसल और पश्चिमी गंग जैसे प्रतिष्ठित सभ्यताओं का विकास हुआ। इस अवधि के दौरान भारत को प्राचीन एवं 17वीं सदी तक के मध्ययुगीन विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आंकलित किया जाता है। इसमें विश्व के की कुल सम्पति का एक तिहाई से एक चौथाई भाग मराठा साम्राज्य के पास था, इसमें यूरोपीय उपनिवेशवाद के दौरान तेजी से गिरावट आयी।

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भारत और यूरोप के बीच मसालों का व्यापार ही मुख्य कारण था जिसने अन्वेषण काल को जन्म दिया।

आर्थिक इतिहासकार अंगस मैडीसन की पुस्तक द वर्ल्ड इकॉनमी: ए मिलेनियल पर्स्पेक्टिव (विश्व अर्थव्यवस्था: एक हज़ार वर्ष का परिप्रेक्ष्य) के अनुसार भारत विश्व का सबसे धनी देश था और 17वीं सदी तक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यस्था था।

भारत में इसके स्वतंत्र इतिहास में केंद्रीय नियोजन का अनुसरण किया गया है जिसमें सार्वजनिक स्वामित्व, विनियमन, लाल फीताशाही और व्यापार अवरोध विस्तृत रूप से शामिल है।[3][4] 1991 के आर्थिक संकट के बाद केन्द्र सरकार ने आर्थिक उदारीकरण की नीति आरम्भ कर दी।भारत आर्थिक पूंजीवाद को बढ़ावा देने लग गया और विश्व की तेजी से बढ़ती आर्थिक अर्थव्यवस्थाओं में से एक बनकर उभरा।

सकल घरेलू उत्पाद

2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद भारतीय रूपयों में – 113550.73 अरब रुपये था।

Chart, sunburst chart

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सकल घरेलू उत्पाद (GDP) या जीडीपी या सकल घरेलू आय (GDI), एक अर्थव्यवस्था के आर्थिक प्रदर्शन का एक बुनियादी माप है,[2] यह एक वर्ष में एक राष्ट्र की सीमा के भीतर सभी अंतिम माल और सेवाओ का बाजार मूल्य है।[3] GDP (सकल घरेलू उत्पाद) को तीन प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है, जिनमें से सभी अवधारणात्मक रूप से समान हैं। पहला, यह एक निश्चित समय अवधि में (आम तौर पर 365 दिन का एक वर्ष) एक देश के भीतर उत्पादित सभी अंतिम माल और सेवाओ के लिए किये गए कुल व्यय के बराबर है। दूसरा, यह एक देश के भीतर एक अवधि में सभी उद्योगों के द्वारा उत्पादन की प्रत्येक अवस्था (मध्यवर्ती चरण) पर कुल वर्धित 

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२०१५ में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (nominal) [1]

██ > $64,000

██ $32,000 – 64,000

██ $16,000 – 32,000

██ $8,000 – 16,000

██ $2,000 – 4,000

██ $4,000 – 8,000 

██ $1,000 – 2,000

██ $500 – 1,000

██ < $500

मूल्य और उत्पादों पर सब्सिडी रहित कर के योग के बराबर है। तीसरा, यह एक अवधि में देश में उत्पादन के द्वारा उत्पन्न आय के योग के बराबर है- अर्थात कर्मचारियों की क्षतिपूर्ति की राशि, उत्पादन पर कर औरसब्सिडी रहित आयात और सकल परिचालन अधिशेष (या लाभ)[4][5]

GDP (सकल घरेलू उत्पाद) के मापन और मात्र निर्धारण का सबसे आम तरीका है खर्च या व्यय विधि (expenditure method):

GDP (सकल घरेलू उत्पाद) = उपभोग + सकल निवेश + सरकारी खर्च + (निर्यात – आयात), या,

GDP = C + I + G + (X − M).

“सकल” का अर्थ है सकल घरेलू उत्पाद में से पूंजी शेयर के मूल्यह्रास को घटाया नहीं गया है। यदि शुद्ध निवेश (जो सकल निवेश माइनस मूल्यह्रास है) को उपर्युक्त समीकरण में सकल निवेश के स्थान पर लगाया जाए, तो शुद्ध घरेलू उत्पाद का सूत्र प्राप्त होता है।

इस समीकरण में उपभोग और निवेश अंतिम माल और सेवाओ पर किये जाने वाले व्यय हैं।

समीकरण का निर्यात – आयात वाला भाग (जो अक्सर शुद्ध निर्यात कहलाता है), घरेलू रूप से उत्पन्न नहीं होने वाले व्यय के भाग को घटाकर (आयात) और इसे फिर से घरेलू क्षेत्र में जोड़ कर (निर्यात) समायोजित करता है।

अर्थशास्त्री (कीनेज के बाद से) सामान्य उपभोग के पद को दो भागों में बाँटना पसंद करते हैं; निजी उपभोग और सार्वजनिक क्षेत्र का (या सरकारी) खर्च.

सैद्धांतिक मैक्रोइकॉनॉमिक्स में कुल उपभोग को इस प्रकार से विभाजित करने के दो फायदे हैं:

निजी उपभोग कल्याणकारी अर्थशास्त्र का एक केन्द्रीय मुद्दा है। निजी निवेश और अर्थव्यवस्था का व्यापार वाला भाग अंततः (मुख्यधारा आर्थिक मॉडल में) दीर्घकालीन निजी उपभोग में वृद्धि को निर्देशित करते हैं।

यदि अंतर्जात निजी उपभोग से अलग कर दिया जाए तो सरकारी उपभोग को बहिर्जात माना जा सकता है,[तथ्य वांछित] जिससे सरकारी व्यय के विभिन्न स्तर एक अर्थपूर्ण व्यापक आर्थिक ढांचे के भीतर माने जा सकते हैं।

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1990 के बाद भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) तेजी से बढ़ा है।

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार

वैश्विक निर्यातों और आयातों में भारत का हिस्सा वर्ष 2000 में क्रमशः 0.7 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत से बढ़ता हुआ वर्ष 2013 में क्रमशः 1.7 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत हो गया। भारत के कुल वस्तु व्यापार में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है जिसका सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा 2000-01 के 21.8 प्रतिशत से बढ़कर 2013-14 में 44.1 प्रतिशत हो गया।

भारत का वस्तु निर्यात 2013-14 में 312.6 बिलियन अमरीकी डॉलर (सीमा शुल्क आधार पर) तक जा पहुंचा। इसने 2012-13 के दौरान की 1.8 प्रतिशत के संकुचन की तुलना में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।

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2012-13 की तुलना में 2013-14 में आयातों के मूल्य में 8.3 प्रतिशत की गिरावट हुई जिसकी वजह तेल-भिन्न आयातों में 12.8 प्रतिशत की गिरावट रही। सरकार द्वारा किए गए अनेक उपायों के कारण सोने का आयात 2011-12 के 1078 टन से कम होकर 2012-13 में 1037 टन तथा और कम होकर 2013-14 में 664 टन रह गया। मूल्य के संदर्भ में, सोने और चांदी के आयात में 2013-14 में 40.1 प्रतिशत की गिरावट हुई और वह 33.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया। 2013-14 में आयातों में हुई जबरस्त गिरावट और साधारण निर्यात वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत का व्यापार घाटा 2012-13 के 190.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से कम होकर 137.5 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया जिससे चालू व्यापार घाटे में कमी आई।

चालू खाता घाटा

2012-13 में कैड में भारी वृद्धि हुई और यह 2011-12 के 78.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से कहीं अधिक 88.2 बिलियन अमरीकी डॉलर (स.घ.उ. का 4.7 प्रतिशत) के रिकार्ड स्तर पर जा पहुंचा। सरकार द्वारा शीघ्रतापूर्वक किए गए कई उपायों जैसे सोने के आयात पर प्रतिबंध आदि के परिणामस्वरूप, व्यापार घाटा 2012-13 के 10.5 प्रतिशत से घटकर 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद का 7.9 प्रतिशत रह गया।

विदेशी ऋण

भारत का विदेशी ऋण स्टॉक मार्चांत 2012 के 360.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले मार्चांत 2013 में 404.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था। दिसम्बर 2013 के अंत तक यह बढ़कर 426.0 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।[2] चूंकि एक बिलियन डॉलर = एक अरब डॉलर इसलिए 426 बिलियन डॉलर = 426अरब डॉलर अब चूंकि एक डाॅलर= 60 रुपये इसलिए 426 अरब डॉलर = 426*60 अरब रुपये अर्थात 25560 अरब रुपये अर्थात 25560*100 करोड़ रुपये =2556000 करोड़ रुपये =पच्चीस लाख छप्पन हजार करोड़ रुपये।

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विकास के लक्ष्य भिन्न – भिन्न एवं परस्पर विरोधी कैसे:-

प्रत्येक व्यक्ति या समूह के विकास के लक्ष्य भिन्न भिन्न हो सकते हैं और कई बार इनकी प्रकृति परस्पर विपरीत भी हो सकती है। एक के लिए विकास का लक्ष्य दूसरे के लिए विनाश का कारण भी बन सकता है।

उदाहरण:- नदी पर बाँध बनाना, वहाँ के किसानों के विस्थापन का कारण बन सकता है।

आय के अतिरिक्त अन्य कारक जो हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:-

आय के अतिरिक्त बेहतर जीवन के लिए परिवार, रोज़गार, मित्रता, सुरक्षा व समानता की भावना, शांतिपूर्ण माहौल आदि भी महत्त्वपूर्ण हैं। क्योंकि मुद्रा से केवल भौतिक वस्तुएँ ही खरीदी जा सकती हैं।

आर्थिक विकास:-

एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक अर्थव्यवस्था की वास्तविक ‘ प्रति व्यक्ति आय दीर्घ अवधि में बढ़ती है।

आर्थिक विकास के लिए साक्षरता की अनिवार्यता:-

  • इससे ज्ञान व दक्षता प्राप्त होती है।
  • रोज़गार का स्तर बढ़ता।
  • नई तकनीकों का प्रयोग व स्तर बढ़ता है।
  • लोगों में स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि के प्रति जागरूकता बढ़ती है।
  • नए – नए उद्योगों को स्थापित करने की क्षमता बढ़ती है।

एक देश की आय क्या है ?

किसी देश की आय उस देश के सभी निवासियों की आय है। इससे हमें देश की कुल आय ज्ञात होती है।

देशों के मध्य विकास को नापने वाले कारक:-

देशों के मध्य विकास को नापने के लिए औसत आय के साथ सार्वजनिक सुविधाओं की उपलब्धता, स्वास्थ्य सेवाएँ, जन्म व मृत्यु दर, जीवन प्रत्याशा, प्रदूषण मुक्त वातावरण आदि मानकों का भी प्रयोग किया जाता है।

देश की औसत आय की गणना:-

प्रत्येक देश के लिए औसत आय की गणना, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा डॉलर में की जाती है।

एक विकासशील और विकसित देश की मुख्य विशेषताएँ:-

  1. विकसित देश:-
  • नई तकनीक व विकसित उद्योग।
  • उच्च स्तरीय रहन – सहन।
  • उच्च प्रति व्यक्ति आय।
  • साक्षरता दर उच्च।
  • लोगों की स्वास्थ्य स्थिति बेहतर (जन्मदर, मृत्यु दर पर नियंत्रण)
  1. विकासशील देश:-
  • द्योगिक रूप से पिछड़े हुए।
  • निम्न प्रति व्यक्ति आय।
  • साक्षरता दर नियम
  • सामान्य रहन – सहन।
  • बेहतर स्वास्थ्य का अभाव (अधिक मृत्यु दर)

आर्थिक नियोजन:-

देश के साधनों का लाभ उठाकर देश के विकास को योजनाबद्ध रूप से बढ़ाना। 

राष्ट्रीय आय:-

देश के अंदर उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य तथा विदेशों से प्राप्त आय के जोड को राष्ट्रीय आय कहते है। 

प्रति व्यक्ति आय:-

  1. जब देश की कुल आय को उस देश की जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो जो राशि मिलती है उसे हम प्रति व्यक्ति आय कहते हैं। 
  2. भारत मध्य आय वर्ग के देशों में आता है क्योंकि उसकी प्रतिव्यक्ति आय 2019 में केवल US $ 6700 प्रति वर्ष थी।

शिशु मृत्यु दर:-

किसी वर्ष में पैदा हुए 1,000 जीवित बच्चों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात दिखाती है। 

साक्षरता दर:-

7 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षर जनसंख्या का अनुपात। 

निवल उपस्थिति अनुपात:-

14 तथा 15 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले कुल बच्चों का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत। 

बी . एम . आई .:-

शरीर का द्रव्यमान सूचकांक पोषण वैज्ञानिक, किसी व्यस्क के अल्पपोषित होने की जाँच कर सकते हैं। यदि यह 18.5 से कम है तो व्यक्ति कुपोषित है अगर 25 से ऊपर है तो वह मोटापे से ग्रस्त हैं। 

मानव विकास सूचकांक:-

आय व अन्य कारकों की समाकेतिक सूची इसके आधार पर किसी देश को उसकी गुणवत्ता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। यह विभिन्न देशों में विकास के स्तर का मूल्यांकन करने का मापदंड है। इसमें देशों की तुलना लोगों के शैक्षिक स्तर, स्वास्थ्य स्थिति और प्रति व्यक्ति आय के आधार पर होती है।

मानव विकास सूचाकांक में भारत का स्थान:-

मानव विकास सूचाकांक की गणना में भारत का 136 वाँ स्थान है।

विकास की धारणीयता:-

विकास की धारणीयता से अभिप्राय है कि पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना विकास करना तथा वर्तमान पीढियो की जरूरतों के साथ – साथ भावी पीढ़ियों की जरूरतों को ध्यान में रखना।

विकास की धारणीयता की विशेषताए:-

  • संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग।
  • नवीकरणीय संसाधनों का अधिकतम उपयोग।
  • वैकल्पिक संसाधनों को ढूँढने में मदद।
  • संसाधनों के पुनः उपयोग व चक्रीय प्रक्रिया को बढ़ावा।

नवीकरणीय साधन:-

  1. भूमिगत जल नवीकरणीय साधन का उदाहरण हैं। फसल और पौधों की तरह इन साधनों की पुनः पूर्ति प्रकृति करती है, लेकिन यहाँ भी हम इन साधनों का अति – उपयोग कर सकते हैं।
  2. उदाहरण के लिए, भूमिगत जल का यदि बरसात द्वारा हो रही पुन : पूर्ति से अधिक प्रयोग करते हैं, तो हम इस साधन का अति – उपयोग कर रहे होंगे।

गैर नवीकरणीय साधन:-

गैर नवीकरणीय साधन वो हैं, जो कुछ ही वर्षों के प्रयोग के पश्चात् समाप्त हो जाते हैं। इन संसाधनों का धरती पर एक निश्चित भण्डार है और इनकी पुनः पूर्ति नहीं हो सकती।

उदाहरण: जीवाश्म उर्जा संसाधन (तेल, कोयला) और लोहा, सीसा, एल्युमीनियम, यूरेनियम खनिज आदि।

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NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 1 सामान्यत: किसी देश का विकास किस आधार पर निर्धारित किया जा सकता है?

  1. प्रतिव्यक्ति आय
  2. औसत साक्षरता दर
  3. लोगों की स्वास्थ्य स्थिति
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर – d) उपरोक्त सभी

प्रश्न 2 निम्नलिखित पड़ोसी देशों में से मानव विकास के लिहाज से किस देश की स्थिति भारत से बेहतर है?

  1. बांग्लादेश
  2. श्रीलंका
  3. नेपाल
  4. पाकिस्तान

उत्तर –b) श्रीलंका

प्रश्न 3 मान लीजिए कि एक देश में चार परिवार हैं। इन परिवारों की प्रतिव्यक्ति आय 5,000 रुपये है। अगर तीन परिवारों की आय क्रमश: 4,000, 7,000 और 3,000 रुपये है, तो चौथे परिवार की आय क्या है?

  1. 7,500 रुपये
  2. 3,000 रुपये
  3. 2,000 रुपये
  4. 60,000 रुपये

उत्तर – d) 60,000 रुपये

प्रश्न 4 विश्व बैंक विभिन्न वर्गों का वर्गीकरण करने के लिए किस प्रमुख मापदंड का प्रयोग करता है? इस मापदंड की, अगर कोई है, तो सीमाएँ क्या हैं?

उत्तर – विभिन्न देशों के वर्गीकरण में विश्व बैंक द्वारा उपयोग किए जाने वाले मुख्य मापदंड-

प्रति व्यक्ति आय वाले देश जिनके प्रति वर्ष 12616 डॉलर प्रति वर्ष और उससे अधिक की राशि है, उन्हें अमीर देश कहा जाता है और जिनकी प्रति व्यक्ति आय 1035 अमेरिकी डॉलर या उससे कम है उन्हें कम आय वाले देश कहते हैं। भारत कम मध्यम आय वाले देशों की श्रेणी में आता है क्योंकि 2012 में प्रति व्यक्ति आय केवल 1530 डॉलर प्रति वर्ष थी। मध्य पूर्व और कुछ अन्य छोटे देशों को छोड़कर अमीर देशों को सामान्यतः विकसित देश कहा जाता है।

सीमाएँ-

इस मापदंड की सीमाएं यह है कि जबकि औसत आय प्रतिस्पर्धा के लिए उपयोगी है, यह हमें यह नहीं बताती है कि लोगों के बीच यह आय कितनी है, एक देश में अधिक न्यायसंगत वितरण हो सकता है। लोग न तो बहुत अमीर हो सकते हैं और न ही बहुत गरीब हैं लेकिन एक ही देश में एक ही औसत आय के साथ, एक व्यक्ति अत्यंत समृद्ध हो सकता है, जबकि अन्य बहुत खराब हो सकते हैं इसलिए, औसत आय की विधि किसी देश की सही तस्वीर नहीं देती है। यह मापदंड लोगों के बीच असमानताओं को छुपाता है।

प्रश्न 5 विकास मापने का यू.एन.डी.पी. का मापदण्ड किन पहलुओं में विश्व बैंक के मापदण्ड से अलग है?

उत्तर – विकास मापने के विश्व बैंक के मापदण्ड का आधार बिंदु औसत अथवा प्रतिव्यक्ति आय हैं। परंतु यू. एन.डी. पी. अर्थात संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के विकास मापदण्ड में विभिन्न देशों के विकास की तुलना वहाँ के लोगों के शैक्षिक स्तर, उनकी स्वास्थ्य स्थिति और प्रतिव्यक्ति आय के आधार पर की जाती हैं।

प्रश्न 6 हम औसत का प्रयोग क्यों करते हैं? इनके प्रयोग करने की क्या कोई सीमाएँ हैं? विकास से जुड़े अपने उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – औसत का प्रयोग किसी भी विषय या क्षेत्र का अनुमान विभिन्न स्तरों पर लगाने के लिए किया जाता है। जैसे-किसी देश में सभी लोग अलग-अलग आय प्राप्त करते हैं किंतु देश के विकास स्तर को जानने के लिए प्रतिव्यक्ति आय निकाली जाती है जो औसत के माध्यम से ही निकाली जाती है। इससे हमें एक देश के विकास के स्तर का पता चलता है। किंतु औसत का प्रयोग करने में कई समस्याएँ आती हैं। औसत से किसी भी चीज़ का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इसमें असमानताएँ छिप जाती हैं। उदाहरणतः किसी देश में रहनेवाले चार परिवारों में से तीन परिवार 500-500 रुपये कमाते हैं तथा एक परिवार 48,000 रुपये कमा रहा है जबकि दूसरे देश में सभी परिवार 9,000 और 10,000 के बीच में कमाते हैं। दोनों देशों की औसत आय समान है किंतु एक देश में आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है, जबकि दूसरे देश में सभी नागरिक आर्थिक रूप से समान स्तर के हैं। इस प्रकार ‘औसत’ तुलना के लिए तो उपयोगी है किंतु इससे असमानताएँ छिप जाती हैं। इससे यह पता नहीं चलता कि यह आय लोगों में किस तरह वितरित है।

प्रश्न 7 प्रतिव्यक्ति आय कम होने पर भी केरल का मानव विकास क्रमांक पंजाब से ऊँचा है। इसलिए प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिलकुल नहीं है। राज्यों की तुलना के लिये इसका उपयोग नहीं करना चाहिए। क्या आप सहमत हैं? चर्चा कीजिए।

उत्तर – सबसे धनी राज्य होने के बावजूद पंजाब में केरल की तुलना में शिशु मृत्यु दर अधिक है। पंजाब की तुलना में केरल में कक्षा 1 से 4 में निवल उपस्थिति दर अधिक है। इससे पता चलता है कि मानव विकास सूचकांक में केरल एक बेहतर राज्य है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि प्रतिव्यक्ति आय एक उपयोगी मापदण्ड बिलकुल नहीं है। राज्यों की तुलना के लिये इसका उपयोग करना चाहिए लेकिन इसे अन्य मापदण्डों के परिप्रेक्ष्य में देखना जरूरी है।

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 16)

प्रश्न 8 भारत के लोगों द्वारा ऊर्जा के किन स्रोतों का प्रयोग किया जाता है? ज्ञात कीजिए। अब से 50 वर्ष पश्चात क्या संभावनाएँ हो सकती हैं?

उत्तर – ग्रामीण क्षेत्रों में जलावन की लकड़ी ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। शहरी क्षेत्रों में रसोई के ईंधन के रूप में एलपीजी का इस्तेमाल अधिकतर घरों में होता है। इसके अलावा वाहनों के लिये पेट्रोलियम उत्पादों का इस्तेमाल होता है। आज से पचास वर्ष बाद जलावन की लकड़ी मिलना कठिन हो जायेगा क्योंकि तेजी से वनोन्मूलन हो रहा है। जीवाश्म ईंधन भी तेजी से घट रहा है। इसलिए हमें किसी वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत को जल्दी ही विकसित करना होगा। गाँवों में गोबर गैस इसका एक अच्छा समाधान हो सकता है। सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा से पूरे देश की ऊर्जा की जरूरत को आसानी से पूरा किया जा सकता है।

प्रश्न 9 धारणीयता का विषय विकास के लिए क्यों महत्वपूर्ण हैं?

उत्तर – धारणीयता का विषय विकास के लिए अति मह्त्त्व्पूर्ण है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति यही चाहता है कि विकास का स्तर निरन्तर ऊँचा रहे तथा यह आने वाली भावी पीढ़ी के लिए भी कम से कम इसी स्तर पर बना रहे। चूँकि विकास अपने साथ विभिन्न प्रकार के पर्यावरणीय एवं अन्य दुष्परिणाम साथ लेकर आता है जो राष्ट्रीय तथा राज्य सीमाओं का ख़्याल नहीं करते। और यही कारण है कि बहुत से वैज्ञानिक विकास के वर्तमान प्रकार और स्तर को धारणीय नहीं मानते। इस संदर्भ में विकास की धारणीयता तुलनात्मक स्तर पर ज्ञान का एक नया क्षेत्र हैं जिसमें वैज्ञानिक, दशर्रनिक, अर्थशास्त्री और विभिन्न सामासिक वैज्ञानिक परस्पर मिल-जुल कर कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 10 धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन है, लेकिन एक भी व्यक्ति के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। यह कथन विकास की चर्चा में केसे प्रासंगिक है? चर्चा कीजिए।

उत्तर – यह मशहूर कथन महात्मा गांधी का है। हम जानते हैं कि धरती के पास इतने संसाधन हैं कि वे हमारे जीवन में कम नहीं पड़ने वाले। लेकिन हमें अपनी जिंदगी के आगे भी सोचना होगा और भविष्य में आने वाली पीढ़ियों के लिये सोचना होगा। यदि हम प्राकृतिक संसाधनों का दहन करते रहेंगे तो आने वाली पीढ़ियों के लिये कुछ नहीं बचेगा। इसलिए हमें अपने लोभ पर काबू पाना होगा और प्रकृति से केवल उतना ही लेने की आदत डालनी होगी जितना जरूरी है।

अगर एक भी व्यक्ति लालची हो जाए जैसे किसी शक्तिशाली देश का राष्ट्र अध्यक्ष यह चाहे कि केवल उसी का या उसी के देश का वर्चस्व दुनिया में हो और वह इसके लिए इतना लालच में अंधा हो जाए कि वह विनाशकारी हथियारों का प्रयोग करके अपनी जिद पूरी करना चाहे तो सम्पूर्ण मानव जाती विशाल भूमण्डल उसके सारे संसाधन कुछ ही समय में राख हो जाएँगे और पर्याप्त संसाधन नहीं रहेंगे इसलिए यह कथन सही है कि सम्पूर्ण मानव जाती को लालच छोड़कर अपनी बुद्धि का सदुपयोग करते हुए सकुशल नियोजित ढंग से उसका उपयोग करें।

प्रश्न 11 पर्यावरण में गिरावट के कुछ ऐसे उदाहरणों की सूची बनाइए जो आपने अपने आसपास देखे हों।

उत्तर – कूड़े-कचरे और अवांछित गंदगी से जल, वायु और भूमि का दूषित होना ‘पर्यावरण प्रदूषण’ कहलाता है। पर्यावरण में गिरावट के बहुत से उदाहरण हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

  1. जल प्रदूषण- नदियों, झीलों और समुद्रों में बहाए गए कूड़े-कचरे या औद्योगिक अपशिष्ट जल को प्रदूषित करते हैं। इससे जल में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने से जलीय जीव मर जाते हैं। जहाजों से रिसनेवाले तेल से समुद्री जीवों को हानि होती है।
  2. वायु प्रदूषण- कारखानों के धुएँ तथा मोटर वाहनों के धुएँ वायु को प्रदूषित करते हैं। इससे मानव स्वास्थ्य और वन्य जीवन दोनों को ही हानि होती है।
  3. भूमि प्रदूषण– भूमि पर कारखानों द्वारा, घरों या अन्य स्रोतों द्वारा कूड़ा-कचरा आदि फेंकने से पर्यावरणीय समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। कृषि क्षेत्रों में अधिक उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि की उपजाऊ शक्ति खत्म होती है तथा ये उर्वरक भूमि को प्रदूषित करते हैं।

बढ़ती हुई जनसंख्या, संसाधनों का दुरुपयोग, अधिक मात्रा में पेड़ों को काटने के कारण पर्यावरण में गिरावट बहुत तेजी से हो रही है और इसके बहुत से उदाहरण हमारे आसपास हैं।

प्रश्न 12 तालिका में दी गई प्रत्येक मद के लिए ज्ञात कीजिए कि कौन सा देश सबसे ऊपर है और कौन सा सबसे नीचे।

क्रम.देशप्रतिव्यक्ति आय अमरीकी डॉलर मेंजन्म के समय संभावित आयुसाक्षरता दर 15+ वर्ष की जनसँख्या के लिए3 स्तरों के लिए सकल नामांकन अनुपातविश्व सूचकांक (HDI) का क्रमांक
1.श्रीलंका 439074916993
2.भारत 3139646160126
3.म्यांमार 1027619048130
4.पकिस्तान2225635035134
5.नेपाल 1490625061138
6.बांग्लादेश 1870634163137

उत्तर – विभिन्न मापदण्डों पर सबसे ऊपर और सबसे नीचे के देश नीचे दिये गये हैं-

मापदण्डसबसे ऊपरसबसे नीचे
प्रति व्यक्ति आयश्रीलंकाम्यानमार
अधिकतम आयुश्रीलंकाम्यानमार
साक्षरता दरश्रीलंकाबांग्लादेश
सकल नामांकन अनुपातश्रीलंकापाकिस्तान
मानव विकास सूचकांकश्रीलंकानेपाल

प्रश्न 13 नीचे दी गई तालिका में भारत में व्यस्कों (15-49 वर्ष आयु वाले) जिनका बी.एम.आई. सामान्य से कम है (बी.एम.आई. <18.5kg/ m) का अनुपात दिखाया गया है। यह वर्ष 2015-16 में देश के विभिन्न राज्यों के एक सर्वेक्षण पर आधारित है। तालिका का अध्ययन करके निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

राज्यपुरुष (%)महिला (%)
केरल8.510
कर्नाटक1721
मध्य प्रदेश2023
  1. केरल और मध्य प्रदेश के लोगों के पोषण स्तरों की तुलना कीजिए।
  2. क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि देश के लगभग 40 प्रतिशत लोग अल्पपोषित क्यों हैं, यद्यपि यह तर्क दिया जाता है कि देश में पर्याप्त खाद्य है? अपने शब्दों में विवरण दीजिए।

उत्तर –

  1. उपरोक्त आँकड़े केरल और मध्य प्रदेश के लोगों के पोषण स्तर को दर्शाते हैं। इसके अनुसार केरल में 8.5 प्रतिशत पुरुष और 10 प्रतिशत महिलाएँ अल्प-पोषित हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 28 प्रतिशत पुरुष और 28 प्रतिशत महिलाए अल्प-पोषित हैं। इसका अर्थ है कि मध्य प्रदेश में अधिक लोग अल्प-पोषित हैं। अर्थात मध्य प्रदेश की तुलना में केरल के लोगों का पोषण स्तर बेहतर है।
  2. देश में पर्याप्त अनाज होने के बावजूद देश के 40 प्रतिशत लोग अल्प-पोषित हैं क्योंकि अभी भी लगभग 40 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं। ये व्यक्ति इतना भी नहीं कमा पाते कि अपने लिए दो समय का खाना प्राप्त कर सकें। इसलिए देश में अनाज उपलब्ध होने के बावजूद ये उसे खरीद नहीं पाते और अल्प-पोषिते रहते हैं।

Class 10 SSt medium All Chapter Notes and Question Answer

  • Economics
    1. Chapter 1 Vikash
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